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जनाब शाहीद सिद्दक़ी की ग़ज़ल का मराठी अनुवाद करने की एक कोशिश

  शाहीद सिद्द क़ी- ये क्या सितम है के एहसास-ए-दर्द भी कम है शब-ए-फ़िराक़ सितारों मे रौशनी कम है... करीब-ओ-दूर से आती है आपकी आवाज़ कभी बहुत है ग़म-ए-जुस्तजूं,कभी कम है शऊर-ए-इश्क़ आया है अब अपनी मंज़िल पर हुज़ूर-ए-हुस्न तमन्ना-ए-बेखुदी कम है तमाम उम्र तेरा इंतज़ार कर लेंगे मगर ये रंज रहेगा के ज़िंदगी कम है ये कैसी मौज-ए-करम थी निगाह-ए-साक़ी में के उसके बाद से तूफ़ान-ए-तिश्नगी कम है उरूज़-ए-माह को इंसान समझ गया लेकिन हनोज़ अज्मत-ए-इंसान मे आगही कम है   मराठी  भावानुवाद-  जुलुम कसा हा..दु:खे बोथट झाली विरहात तमाच्या चांद फुले जणु विझली चाहूल तिची कधी दूर, जवळुनी आली कधि कमी,अधिक दु:खांशी सलगी झाली.. प्रेमाची भाषा आज तिला जरि कळली अंतरी तिच्या भेटिची आस नच(ना) उरली.. मी जन्मभरी पाहीन तुझी वाटुली पण जन्म संपल्याची सल मनि दाटली.. नयनात सखीच्या वीज अशी लखलखली लाख वादळांची तहान जणू शमली.. चंद्रावर जरि आपुली पाऊले पडली अद्याप श्रेष्ठता सिद्ध नसे जाहली..